जीवन के कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर दृष्टिपात करते हुए, उनमें वेद एवं वैदिक वांगमय के सिद्धांतों और ज्ञान को सम्मिलित करते हुए, जैसा कि महर्षि महेश योगी जी द्वारा पुनर्गठित एवं पुनस्र्थापित किया गया है, व्यक्ति के मानव जीवन को स्वार्गिक जीवन में रूपांतरित करने में इन सिद्धांतों के महत्व एवं उपयोगिता को जानना एवं समझना चाहिए ।
वैदिक सिद्धांतों का अनुभव-ज्ञान की बौद्धिक खोज को संतृप्त एवं पूर्ण करने के लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वैदिक ज्ञान को विगत कुछ पृष्ठों में उल्लिखित किया गया है । साथ ही, व्यावहारिक तकनीक पर पर्याप्त जोर दिया गया है । महर्षि प्रणीत भावातीत ध्यान, सिद्धि कार्यक्रम, अग्रिम तकनीक एवं योगिक उड़ान-चेतना की उच्चतर अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए प्रकृति के समस्त नियमों के केन्द्र एवं ज्ञान, शक्ति व आनन्द के चेतना सागर में गोता लगाना प्रसन्न, स्वस्थ, समृद्ध, प्रबुद्ध, अजेय और आदर्श भारत की स्थापना व भूतल पर स्वर्ग के अवतरण, येे प्रायोगिक कार्यक्रम और उनके परिणाम हैं ।
हमें थोड़ा सा भी संदेह नहीं है और हम पूर्णतया संतुष्ट हैं कि वेद व वैदिक वांगमय का सर्वोच्च ज्ञान, इसके सिद्धांत, व्यावहारिक कार्यक्रम एवं आधुनिक वैज्ञानिक शोधों द्वारा बारंबार प्रामाणिकता हमारे लिये पर्याप्त है । इस शक्ति के साथ हम ‘महर्षि आदर्श भारत अभियान’ को प्रारंभ करना चाहते हैं, हमारे समस्त नगारिकों को आदर्श एवं स्वार्गिक जीवन का उपहार देना चाहते हैं एवं उनके द्वारा हमारे प्रिय विश्व परिवार के वैश्विक नागरिकों को उपकृत करना चाहते हैं । वसुधैव कुटुम्बकम्।
हमारे भारतीय नागरिकों, समाज एवं राष्ट्र को आदर्श बनाने के लिए, हमें हमारा ध्यान निम्नलिखित कार्यक्रमों पर लाने की आवश्यकता है, इसके लिए इन कार्यक्रमों को प्रारंभ करना है एवं हमारे अभियान को सशक्त बनाना है -
व्यक्तिगत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वेद एवं वैदिक साहित्य के समस्त संभावित जीवन पोषणकारी सिद्धांतों एवं व्यावहारिक कार्यक्रमों को लागू करना ।
ऐसी असंख्य चीजें हैं, जो प्रत्येक नागरिक के जीवन में अव्यवस्थित हैं । वर्तमान शिक्षा प्रणाली एवं पाठ्यक्रम कुछ विषयों के वस्तुनिष्ठ ज्ञान का ही शिक्षण करती है किन्तु जीवन के मूल आत्मनिष्ठ क्षेत्र को स्पर्श नहीं करती, जो जीवन को संगठित करने के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं । हमारे समस्त नागरिकों को उनके जीवन को संगठित एवं प्रसन्न बनाने के लिए हम उन्हें जीवन के आत्मनिष्ठ क्षेत्र का ज्ञान प्रदान करेंगे । जब भारतीय नागरिकों का जीवन संगठित होगा तो भारत भी संगठित होगा ।
समय-समय पर हम सभी अनुभव करते हैं कि हमारे व्यक्तिगत जीवन के साथ ही हमारा समाज निष्क्रिय एवं स्थिर सा होता जा रहा है, यह बिना आनंद के सूखा सा जीवन है, अवसाद जीवन के आनन्दमय तत्वों को निगल रहा है । यह हमारे समाज के स्वास्थ्य एवं प्रगति के लिए अत्यन्त हानिकारक है। यह स्थिति व्यक्तिगत एवं सामूहिक संचित तनाव, दबाव, थकान, पारिवारिक सदस्यों के साथ मतभेद, इच्छाओं की परिपूर्णता में असफलता, निर्धनता एवं कई अन्य समान कारणों से उन्नत होती है । हम प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में प्रसन्न, स्वस्थ एवं प्रगतिशील बने रहने के लिए छोटे-छोटे पाठ्यक्रम प्रस्तावित करेंगे । समूचा भारत हर तरह से प्रगतिशील होगा ।
भारत सब तरह से परंपराओं, संस्कृति, सामाजिक संरचना, ज्ञान, प्रकृति, संसाधनों इत्यादि से समृद्ध है । हमें हमारे नागरिकों को सब तरह से भारत को सर्वसमर्थ बनाने के लिए इन समस्त संसाधनों को पहचानने एवं उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है ।
शाश्वत् काल से, भारत समग्रता का आनंद उठाता रहा है । विदेशी आक्रमणों एवं शासन के कारण, भारत ने अपने समग्र मूल्यों में से कुछ को खो दिया है, हम उन समस्त खोए हुये मूल्यों को पुर्नस्थापित करेंगे एवं भारत को पुनः समग्र, संपूर्ण बनाने के लिए इसे अपनी सामाजिक संरचना में फिर से सम्मिलित करेंगे ।
यह अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षेत्र है, इस पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये । भारतीयों को दास बनाये रखने की ब्रिटिश नियोजित शिक्षा का वृहत् भाग आज भी, राजनीतिक स्वतंत्रता के 67 वर्ष बाद भी भारत में सतत् रूप से चल रहा है । यह हमारे प्रिय भारत एवं नागरिकों के लिए बड़े शर्म का विषय है । हम जानते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा गठित सरकार इस दिशा में अधिक कार्य नहीं करेगी, क्योंकि यह दल वोट की राजनीति के लिए अपने को धर्म निरपेक्ष बनाये रखना चाहते हैं । आइये हम नागरिक ही इस दिशा में पहल करें एवं शिक्षा में निजी स्तर पर वैदिक, जीवन पोषणकारी सिद्धांतों को सम्मिलित करें । केन्द्र सरकार के प्रयासों से अब योग को वैश्विक मान्यता मिल गयी है, किन्तु वर्तमान में लोग योग को शारीरिक अभ्यास के रूप में ही जानते हैं । हमें शिक्षा में अष्टांग योग की पूर्णता को सम्मिलित करने की आवश्यकता है । योग, वेद एवं वैदिक साहित्य के 40 क्षेत्रों में से एक है । हमें जीवन को पूर्ण बनाने के लिए समस्त मूल्यों को अपनाने की आवश्यकता है ।
माननीय प्रधानमंत्री एवं वर्तमान भारतीय केन्द्र सरकार इस पर अधिक ध्यान दे रही है । प्रतिभाशाली भारतीय मस्तिष्क संसार भर में प्रमुख सफल वैज्ञानिक कार्यक्रमों के आधार में रहा है । हम इन वैज्ञानिकों को सभी क्षेत्रों में उनकी प्रतिभा में वृद्धि के लिए वेद एवं वैदिक साहित्य का ज्ञान उनके विषयों को पूर्णता प्रदान करने के लिये उपलब्ध करायेंगे । महर्षि वैश्विक संगठन में कई प्रतिभासंपन्न वैज्ञानिक हैं, उन्हें हम वैदिक विज्ञान एवं आधुनिक विज्ञान पर अपनी शोध प्राप्तियों से हमारे वैज्ञानिकों को परिचित कराने के लिए, ज्ञान विज्ञान के परस्पर आदान-प्रदान के लिए आमंत्रित करेंगे ।
दो प्रकार की स्वच्छता होती है । बाह्य- शारीरिक-भौतिक एवं आंतरिक-चेतना के स्तर पर। आंतरिक स्वच्छता बाह्य स्वच्छता का स्रोत है, किन्तु कोई भी व्यक्ति आंतरिक स्वच्छता पर विचार नहीं करता । हमारे प्रिय प्रधानमंत्राी जी ने स्वच्छता के भौतिक स्तर पर स्वच्छ भारत मिशन प्रारंभ किया है, किन्तु यह तभी सफल होगा जब आंतरिक स्वच्छता का कार्यक्रम भी इसके साथ ही प्रारंभ किया जाये । हम ‘जड़ों को पानी देकर फल का आनंद लेने वाले’ सिद्धांत के बारे में जानते हैं । पत्तियों को, पुष्पों को अथवा वृक्ष के तने को सिंचित करने मात्रा से फल उगाने में वृक्ष को कोई सहायता नहीं मिलेगी । यह चेतना ही है, जो समस्त सिद्धांतों को समझती है एवं उसे विकसित किये जाने की आवश्यकता है ।
भारत के गौरव को समस्त वेद एवं वैदिक साहित्य में गाया गया है । संसार के नागरिक एवं देश भारतीय संस्कृति, परंपराओं, ज्ञान, विनम्रता, मधुरता एवं भारतीय नागरिकों की समस्त महान मानवीय विशेषताओं से विस्मित हैं । भारत को पहले से ही इसके गौरव के लिए मान-सम्मान मिला है, किन्तु इसे ओर अधिक विस्तारित किये जाने की आवश्यकता है, न केवल प्रचार-प्रसार के लिए बल्कि हमारे प्रिय समस्त विश्व परिवार की सहायता एवं उनके जीवन में स्वार्गिक सुख प्रदान करने के लिए, भारत ही एकमात्र वह असाधारण भूमि है जहां भूतल पर स्वर्ग का इतिहास विद्यमान है एवं पृथ्वी पर स्वर्ग निर्मित करने के समस्त विधान उपलब्ध हैं। केवल एवं केवल भारत ही इसे कर सकता है, प्रत्येक भारतीय एवं प्रत्येक राष्ट्र को उसके असाधारण गौरव से गौरवान्वित कर सकता है ।
भारत के कुछ सैकड़ों वर्षों के दुर्भाग्यपूर्ण विदेशी शासन को छोड़ दें, तो हजारों वर्षों का पूर्ण गौरवशाली इतिहास रहा है । जीवन के समस्त क्षेत्रों में वेद एवं वैदिक साहित्य के पूर्ण ज्ञान को समावेशित करने के साथ शीघ्र ही हम हमारे प्रिय भारत के लिए उसी गौरव को पुनः प्राप्त करने में सफल होंगे एवं इसके साथ ही हम संसार को भी गौरव की उसी विशेषता से उपकृत करेंगे । भारत की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित होगी ।
वह समय अत्यन्त सुन्दर था जब भारत का प्रत्येक घर संपन्न था, जिसे अत्यन्त ही सुन्दरता से इस गीत में वर्णित किया गया है ‘जहां डाल-डाल पर सोने की चिडि़या करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा ।’ जहां वृक्षों की प्रत्येक शाखा पर स्वर्णिम पक्षी डेरा बनाते हैं, वह मेरा भारत है । आक्रमणकारियों ने भारतीय सम्पत्ति को लूटा एवं निर्धनता ला दी । हमारे ज्ञान से, हमारी शक्ति से, हमारे साहस से हम हमारी सम्पत्ति को वापस प्राप्त करेंगे एवं भारत शीघ्र ही पुनः स्वर्णिम भारत बनेगा ।
समाज एवं शिक्षा में निवारोन्मुखी वैदिक स्वास्थ्य उपचार प्रणाली के प्रचलन से प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ हो सकता है । महर्षि जी ने आयुर्वेद एवं वैदिक स्वास्थ्य उपचार प्रणाली के कई विस्मृत क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया है, जिसे सामान्य जनता की जागृति में लाये जाने की आवश्यकता है । नागरिकों को पूर्ण स्वास्थ्य देकर हम अपने भारत के लिए सामूहिक स्वास्थ्य को निर्मित करेंगे ।
भारत देश एवं भारतीय, विश्व परिवार के सर्वाधिक आध्यात्मिक लोगों में से हैं । उदारता, करूणा, मित्रता, प्रसन्नता, धर्मपरायण, तर्कशाली, ज्ञानवान ये भारतीयों में आध्यात्मिक मूल्यों की कई विशेषताओं में से कुछ हैं । समय के साथ भारत ने आध्यात्मिक मूल्यों को खोया है, पर हम पुनः अध्यात्मक जगायेंगे ।
भारत का स्वाभाववश अत्यन्त ही उदार होने का इतिहास रहा है। समस्त वैदिक पौराणिक कथायें एवं अन्य वैदिक साहित्य भारतीय उदारता के प्रमाण से भरपूर हैं। यदि धन, ज्ञान, समर्थन, प्रशंसा, अथवा क्षमा पर विचार किया जाये तो भारत प्रथम स्थान पर रहा है और अभी भी है। हम सतत रूप से हमारे भारतीय नागरिकों को इस उदार प्रकृति एवं व्यवहार को बिना भूले, बनाये रखने के लिए प्रेरित करते रहेंगे ।
भारत समस्त राष्ट्रों का एक महान मित्र रहा है एवं अभी भी है । एक अच्छे मित्र की समस्त विशेषताएं भारत के प्रत्येक कण में निहित हैं । इतिहास स्पष्ट करता है कि भारत ने कई बार अपने मित्रों की सुरक्षा, सुनिश्चितता एवं भलाई के लिए सहायता हेतु महान त्याग किया है। हम हमारे भारतीय नागरिकों को सतत रूप से उनके मित्रों एवं राष्ट्रों के उत्तम मित्र बने रहने के लिए स्मरण कराते रहेंगे । हमारे प्रिय प्रधानमंत्री ने इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभायी है एवं हम मित्र भारत की उनकी इस पहल का समर्थन करेंगे ।
भारत की प्रारंभ से ही सुरक्षात्मक बने रहने की, न कि आक्रामक प्रकृति रही है और आज भी है, किन्तु कुछ व्यक्ति, व्यक्ति समूह एवं कुछ राष्ट्र हमारी मधुरता एवं मित्रता का अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं, वे हमें दुर्बल समझते हैं । भारतीय सरकार एवं भारतीय नागरिकों को प्रकृति की निवारोन्मुखी सुरक्षा रणनीति, ‘हेयम् दुःखम् अनागतम्’, को अपनाना ही चाहिए । उस खतरे का निवारण करें जो अभी आया ही नहीं है । हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पास हमारे वैदिक साहित्य में वैदिक सुरक्षा प्रणाली है, हम शत्रु को कहाँ रोकना चाहते हैं जब वह आक्रमण करता है जब वह सीमा में प्रवेश कर रहा है जब वह सीमा पर पहुँच रहा है जब वह अपने शिविर में आक्रमण की तैयारी कर रहा है अथवा जब वह अपने मन में शत्रुता को विकसित कर रहा है शत्रु से सामना करने का सरल, मितव्ययी, सुरक्षित एवं सर्वाधिक सुनिश्चित तरीका उसकी शत्रुता मिटाना है । किसी भी मन में शत्रुता को विकसित न होने दें, इसे हमारे वैदिक साहित्य में ‘युद्ध पूर्व की विजय’ के रूप में जाना जाता है । हम अत्यन्त सशक्तता से हमारी सरकार से अनुरोध करेंगे कि वह भारत के अन्दर एवं बाह्य सीमाओं को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के लिए समस्त सुरक्षा बलों में एक ‘वैदिक निवारक समूह’ की स्थापना करे । हमारा सुदृढ़, सशक्त एवं सुरक्षित भारत हमेशा के लिए बलवान और अजेय भारत होगा ।
हमारे पास भावातीत ध्यान का वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित कार्यक्रम है जो अपराध का निवारण करता है और साथ ही कारागार सहित कई पुनर्वास कार्यक्रमों में भी भली भांति कार्य करता है । इसे अत्यन्त सकारात्मक परिणामों के साथ विश्वभर में अपनाया गया है ।
अपराध एवं अपराधियों के विषय में कई सिद्धांत पाये जाते हैं । एक सिद्धांत के अनुसार मस्तिष्क के ‘एमिगडला’ को भौतिक क्षति पहुँचने से आपराधिक व्यवहार उत्पन्न होता है । एक अन्य सिद्धांत के अनुसार मस्तिष्क में सेरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर मनोदशा को प्रभावित करता है एवं आपराधिक सोच में परिणित करता है । मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि कुछ अपूर्ण इच्छाओं के कारण, जैसे किसी विशिष्ट पदार्थ में रूचि, धन की इच्छा, उत्तम जीवन शैली, विशिष्ट शिक्षा में रूचि होना और इसे प्राप्त न कर पाने की स्थिति लोगों में गहरी असंतुष्टि अथवा अप्रसन्नता का कारण बनती है । उक्त अनुभव की पुनरावृत्ति व्यवहार को अपराध की ओर मोड़ती है । अपराध एवं आतंकी गतिविधि तनावपूर्ण मस्तिष्क में विकसित होती है, यह सर्वमान्य समझ है । मनुष्य भारी तनाव के कारण, अपने स्वप्नों एवं आवश्यकताओं को परिपूर्ण करने में असफल होने और कहीं से कोई सहायता न मिलने की स्थिति में अपराधी जीवन का चुनाव करते हैं ।
प्रबुद्धता को अत्यन्त कठिन लक्ष्य के रूप में निरूपित किया गया है । लोग सोचते हैं कि उन्हें पारिवारिक जीवन को छोड़ना है, हिमालय पर जाना है, एक पैर पर अथवा सिर के बल खड़े होकर ‘तप’ करना है । यह सब आवश्यक नहीं है । घर पर समय की उपलब्धता के अनुसार कुछ मिनटों एवं घंटों के नित्य अभ्यास से व्यक्ति चेतना की उच्चतर अवस्थाओं को प्राप्त कर सकता है एवं अंततः प्रबुद्धता को पा सकता है । हम चाहेंगे कि भारत को संपूर्ण रूप में प्रबुद्ध भारत बनाने के लिए प्रत्येक भारतीय प्रबुद्ध बने । यह अत्यन्त सरल और सभी के लिये संभव है ।
हमारा लक्ष्य जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को आदर्श बनाना है । वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य, वैदिक कृषि, वैदिक सुरक्षा, वैदिक पर्यावरण, वैदिक प्रशासन, वैदिक विधि एवं न्याय, वैदिक सरकार, वैदिक व्यापार एवं उद्योग एवं वास्तविकता में ‘सब कुछ वैदिक’ । इससे प्रत्येक जीवन आदर्श बनेगा और यह भारत को आदर्श, भूतल पर स्वर्ग सा भारत-राम राज्य बनायेगा, जहां कोई भी व्यक्ति किसी कारण से कष्ट नहीं पायेगा । यह हमारी योजना है और हम इसे अत्यन्त शीघ्रता से अपनी सामथ्र्य अनुसार पूरी करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे । प्रथम हम भारत को आदर्श बनाना चाहते हैं और तब हम हमारे कार्यक्रमों से संसार का मार्ग दर्शन करेंगे एवं सम्पूर्ण विश्व परिवार को उपकृत करेंगे । यह हम भारतीयों का संकल्प है और हमें विश्वास है कि भारत अपने सर्वोच्च ज्ञान के आधार पर सदा ही जगत गुरु भारत बना रहेगा ।