सदियों पुरानी सरकारों का संघर्षपूर्ण इतिहास अब समस्या विहीन प्रशासन के एक नवीन सूर्योदय के लिए नियत है, यह तब होगा जब राष्ट्रीय सरकारें स्वयं का प्रकृति की सरकार के साथ गठबंधन करेंगी। हमें पूर्ण प्रशासन को समझना है, सर्वोच्च शासन का एक दृष्टिकोण एवं सृष्टि के संविधान का एक समग्र परीक्षण ।
महर्षि के वेद विज्ञान के अनुसार सरकार की कार्यप्रणाली एवं समाज में सामूहिक चेतना के गुण के मध्य एक आत्मीय संबंध है । महर्षि के शासन के पूर्णता सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य से राष्ट्रीय सरकार के प्रत्येक कार्य को राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति के रूप में देखा गया है, जैसे कि व्यक्ति का प्रत्येक कार्य व्यक्तिगत चेतना की एक अभिव्यक्ति है । महर्षि जी ने व्याख्या की है कि किसी भी देश की सरकार, इसकी प्रणाली जो भी हो-चाहे पूंजीवादी, साम्यवादी, अथवा कोई अन्य प्रणाली हो, राष्ट्र सामूहिक चेतना द्वारा संचालित होता है । राष्ट्रीय चेतना का गुण जो भी हो, वह सदैव राष्ट्रीय सरकार एवं राष्ट्रीय विधानों का गुण होगा । महर्षि जोर देते हैं कि एक सरकार जो भी करती है, वह राष्ट्र की सामूहिक चेतना द्वारा किया जाता है, वैसे ही जैसे कि व्यक्ति द्वारा किया गया कोई भी कार्य व्यक्ति के मन द्वारा अभिप्रेरित होता है ।
चूंकि सरकारी गतिविधि की विशेषता राष्ट्रीय चेतना की विशेषता की एक परिलक्षण मात्रा है, इसलिए महर्षि प्रणीत शासन का पूर्णता सिद्धांत सुझाता है कि त्रुटि पूर्वक लिये गये निर्णय अथवा अप्रभावी सरकारी नीतियुक्त प्रसासनिक विसंगतियां एवं सरकार की असफलता के समस्त अन्य कारणों का आधार राष्ट्र की सामूहिक चेतना में तनाव एवं अव्यवस्था है । इस प्रकार से महत्पूर्ण माध्यमों में से एक सामूहिक चेतना राष्ट्रीय जीवन के गुणों को प्रभावित करती है और शासन पर प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिए उस सीमा तक, जहां से आर्थिक समस्याएं उदित होती हैं, अथवा शासन की आर्थिक नीति असफल होती है तो सामुहिक चेतना में तनाव ही राष्ट्र के आर्थिक स्वास्थ्य की प्रतिकूलता का कारण होता है ।
हम सभी हमारे देश की प्रमुख समस्याओं से अवगत हैं । हम निश्चित रूप से सरकार के प्रत्येक स्तर पर समग्र शासन में सुधार की आवश्यकता अनुभव करते हैं । अधोसंरचना जनसंख्या विकास के साथ ताल-मेल नहीं बनाती । रेल्वे, विमानन, सड़कें, शक्ति/ऊर्जा, तेल एवं गैस इत्यादि ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर तत्काल ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है । शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाना है । भारत में दी जा रही वर्तमान शिक्षा में कोई भी भारतीय ज्ञान शामिल नहीं है । प्रतिवर्ष शिक्षा पर बड़ी संख्या में सम्मेलन, अधिवेशन एवं कार्यशालाएं आयोजित की जाती है, किन्तु कोई उपयोगी परिणाम नहीं मिलता । केवल विषयों के कुछ शीर्षक एवं परीक्षा पैटर्न बदल दिये जाते हैं, किन्तु सामग्री एवं गुणवत्ता पर ध्यानाकर्षण विलुप्त है । स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता, जो कि नागरिकों की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है । जनसंख्या विस्फोट कई घरों, समाजों, ग्रामों, नगरों एवं प्रांतों में कुप्रबंधन के कारणों में से है । जन्म नियंत्रण के उचित नियोजन, शिक्षा एवं योजनाओं के क्रियान्वयन का शिक्षा में अभाव है ।
गरीबी एक अन्य बड़ी चुनौती है, जिसे निश्चित रूप से उचित नियोजन एवं नवीन योजनाओं के साथ सम्हाला जा सकता है । मुख्य कमी, राजनीतिज्ञों की रूचि एवं इच्छा में कमी है एवं समृद्ध लोगों का निर्धनता उन्मूलन करने में सहयोग का अभाव है। अव्यवस्थित सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयां भी एक बड़ी चुनौती हैं । हजारों लाखों करोड़ जमा पूँजी और करों से प्राप्त मुद्रा इन इकाईयों द्वारा व्यर्थ कर दी जाती है । दुर्भाग्य से कोई भी सरकार इस पर कार्य करना नहीं चाहती । इन इकाईयों के प्रबंधक एवं कार्मिक प्रशासन के मुख्य धारा में अपनी व्यक्तिगत हानि एवं भ्रष्टाचार उन्मूलन की सामप्ति के भय से इन इकाईयों का निजीकरण नहीं होने देना चाहते। यह हमें भारत में प्रशासन के समस्त स्तरों पर शासन एवं बड़ी संख्या में निजी इकाईयों में भ्रष्टाचार का स्मरण कराता है ।
महिला सशक्तीकरण प्रारंभ करना, रोजगार के अवसरों का सृजन करना, अपराध एवं आतंकवाद का नियंत्रण, सामयिक एवं उचित न्याय, आंतरिक एवं सीमा सुरक्षा की चुनौतियां, वैकल्पिक ऊर्जा का उत्पादन, आर्थिक विकास की वृद्धि एवं धारण, पर्यावरण की सुरक्षा, प्रदूषण की समाप्ति, धर्म निरपेक्ष के साथ-साथ धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी एवं एकीकृत ग्रामीण विकास कई अन्य गंभीर समस्याओं में से कुछ हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने एवं समाधान निकालने की आवश्यकता है ।
महर्षि जी ने सरकारों की समस्त समस्याओं का वैदिक समाधान उपलब्ध करा दिया है । रामराज्य- प्रकृति का प्रशासन-प्रशासन मे युगों पुराने पूर्णता के आदर्श को प्रत्येक सरकार द्वारा एक सरल योगिक, वैदिक, धर्मनिरपेक्ष, पंथ निरपेक्ष वैज्ञानिक फार्मूले, ‘एक सरकार के लिए समूह’ के द्वारा, चेतना के क्वांटम-यांत्रिकीय क्षेत्र से निष्पादित योगिक फ्रलाइंग अभ्यासकार्ताओं के एक समूह द्वारा ‘क्षेत्र प्रभाव’ का निर्माण करके राष्ट्र की सामूहिक चेतना में सतोगुण-महर्षि प्रभाव द्वारा साकार किया जा सकता हैं ।
भारत में एक अत्यन्त प्रचलित लोकप्रिय कहावत है- ‘एकहि साधे सब सधे’, उसे साधें, जिसको साध लेने से आप प्रत्येक वस्तु को साध सकते हैं। वह एक तत्व जिसे साधा जाना है, वह चेतना है । सृष्टि के संविधान की ब्रह्मांडीय सामथ्र्य का उपयोग करने वाली चेतना की-प्राकृतिक विधानों की पूर्ण सामथ्र्य ही एक सरकार को पूर्ण होने के लिए, समस्या विहीन सरकार के लिए प्राकृतिक विधान के समर्थन के लिए अनुग्रहित कर सकती है । ‘एक सरकार के लिये एक समूह’ ही प्राकृतिक विधानों द्वारा राम राज्य प्रशासन को स्थापित कर सकता है, जहां सरकार को किसी भी प्रकार की कोई समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा, जहां प्रत्येक व्यक्ति विनम्र होगा एवं सरकार के लिए सहयोगी होगा, नागरिकों के हित में सरकार की योजनाओं एवं कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने में सहयोग करेगा ।
भारत सरकार एवं राज्य सरकार को अपनी नियत जनसंख्या के एक प्रतिशत के वर्गमूल के बराबर योगिक फ्रलायर्स के एक समूह को स्थापित कर लेना चाहिए । उदाहरण के लिए भारत को एक स्थान पर एक साथ भावातीत ध्यान, टी.एम.-सिद्धि कार्यक्रम एवं योगिक उड़ान के दिन में दो बार अभ्यास के लिए लगभग 3535 योगिक फ्रलायर्स के एक समूह की आवश्यकता है । हमारे प्रिय प्रधानमंत्राी जो सदैव 125 करोड़ भारतीयों का गर्व के साथ उल्लेख करते हैं, उन्हें केवल 4000-5000 (अवकाश एवं भौतिक उपस्थिति पर विचार करते हुए) व्यक्तियों को पूर्ण कालिक रूप से भारत के लिए शांति, समृद्धि, अजेयता के निर्माण के लिए प्रायोजित करने की आवश्यकता है ।
इसी प्रकार से समस्त राज्य सरकारें उनके अपने समूह बना सकती हैं । मध्य प्रदेश को 877 व्यक्तियों के समूह की आवश्यकता है, उत्तर प्रदेश को 1412 योगिक फ्रलायर्स के समूह को एकत्र करने की आवश्यकता है, जम्मू एवं कश्मीर को अपनी समस्याओं से बाहर लाने के लिए 354 की एक अत्यन्त छोटी संख्या में योगिक फ्रलायर्स की आवश्यकता है । जहां समस्याएं गंभीर हैं, वहां समस्याओं के समाप्त होने तक साधकों की संख्या बढ़ायी जा सकती है । यह प्रभावित क्षेत्रों में अतिरिक्त सैन्य बल भेजने जैसा है अथवा भूकंप प्रभावित क्षेत्र में भवन निर्माण के लिए अभियंताओं द्वारा अतिरिक्त लोहा व सीमोंट लगाने जैसा है । सरकारों को इस समूह के लिए अतिरिक्त कोष की आवश्यकता नहीं है । सरकारों के पास पहले से ही उनके नियंत्रण में कई समूह हैं कोई उद्योग, सेना, अर्धसैनिक बल, पुलिस बल अथवा विद्यार्थी समूह का राष्ट्र के लिए अजेयता निर्माण हेतु चुनाव किया जा सकता है । भारत वास्तव में राष्ट्रों के मंडल में एक चमकता सितारा बनेगा एवं अन्य राष्ट्रों के मार्गदर्शन में भी समर्थ बनेगा ।