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Vedic Law and Vedic Justice

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उपलब्ध सर्वे एवं आंकड़ों के अनुसार भारत संसार में सबसे अधिक लंबित न्यायालयीन प्रकरणों की स्थिति में है । संख्या चैंकाने वाली है; 40 लाख प्रकरण भारतीय उच्च न्यायालयों एवं लगभग 65 हजार केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं । बड़ी संख्या में ऐसे प्रकरण हैं जो 10 से 12 वर्ष तक सतत चल रहे हैं । कई प्रकरणों में संबंधित पक्षों का स्वर्गवास हो जाता है एवं प्रकरण बिना किसी निर्णय के बंद कर दिये जाते हैं ।

ऐसी ही भयानक स्थिति अपराध के पंजीयन की है, जबकि वृहत संख्या में प्रकरण पंजीबद्ध ही नहीं किये जाते । यह दर्शाता है कि यह कोई प्रशासनिक समस्या नहीं है, यह भारत की विधि प्रणाली के मूल में कोई गंभीर समस्या है, जिस पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है, अन्यथा अपराध सतत रूप से घटित होते रहेंगे, बढ़ेंगे, प्रकरणों में वृद्धि होगी, न्यायाधीशों का बहुमूल्य समय और भारतीय कोष के संसाधन इस स्थिति के निर्वहन में व्यर्थ होते रहेंगे । प्रकरण के पक्ष सामयिक न्याय के बिना कष्ट भोगते रहेंगे । विलंब से प्राप्त न्याय, न्याय न मिलने के बराबर है । यह न्यायालयों का सामना करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की पीड़ा है, किंतु वह असहाय है । विधानों का दुरुपयोग अपने आप में एक लम्बी कहानी है ।

भारतीय शासन को अपराधों को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाने चाहिए । विधि, न्याय एवं पुनर्वास कार्यक्रम को ‘विज्ञान सम्मत वैदिक उपाय’ इसका उत्तर है । विधि, न्याय एवं पुनर्वास को विज्ञान सम्मत होने के लिए, इसे वैदिक विधि, न्याय एवं पुनर्वास किया जाना है । आधुनिक विज्ञान के समस्त सिद्धांत वैदिक विज्ञान के समस्त विषयों को धारण करते हैं, क्योंकि वैदिक विज्ञान आधुनिक विज्ञान का मूल उद्गम है ।

वैदिक विधि, न्याय एवं पुनर्वास को प्राप्त करने का मार्ग वैदिक शिक्षा, वैदिक स्वास्थ्य उपचार, एवं वैदिक प्रशासन द्वारा है जो वेद की समर्थ सृजनात्मकता को-विधि की पूर्ण सामथ्र्य को प्रत्येक व्यक्ति की चेतना एवं शरीर में प्रकट करेगा, ताकि ब्रह्माण्डीय विधि का स्पन्दन-पूर्ण विधान-प्राकृतिक विधान-प्रत्येक व्यक्ति के अपने विचार, वाणी एवं कार्य का स्पंदन एवं विधि की पोषणीय प्रकृति उनके अपने जीवन का प्रकाश पुंज बन जाये ।

वैदिक विधि की इस पूर्णता में, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सहजरूपेण प्रत्येक अन्य व्यक्ति के जीवन को पोषित करेगा एवं समाज वास्तव में समस्या विहीन होगा ।

विधि की शक्ति केवल तभी न्याय प्रदान कर सकेगी, जब यह नागरिकों के जन्मसिद्ध अधिकारों- स्वतंत्रता, सम्पन्नता एवं इच्छाओं को परिपूर्ण कर सके । यह केवल तभी सम्भव है, जब विधि प्रत्येक स्तर पर-राष्ट्रीय, राज्य, नगर इत्यादि-वैदिक विधि हो, जिसका तात्पर्य है कि यह जीवन की प्रत्येक अभिव्यक्ति में ब्रह्माण्डीय विधि के पूर्ण प्रस्पुफुटन को, प्रफुल्लता को प्रोत्साहित करे ।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य के नियम प्रत्येक व्यक्ति को उसके स्वाभाविक जन्मसिद्ध अधिकार-स्वतंत्रता, आनंद एवं प्रगति को प्रदर्शित करने के लिए सजहरूपेण शिक्षित एवं प्रशिक्षित करें-उसकी अपनी इच्छाओं की परिपूर्णता के साथ-साथ प्रत्येक अन्य की इच्छाओं को भी प्रश्रय मिले ।

विधि का प्रयोजन, न्याय का प्रयोजन एवं पुनर्वास का प्रयोजन प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा में निहित ब्रह्माण्डीय विधानों की पूर्ण सामथ्र्य को जीवंत करके सार्थक किया जा सकता है । प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा प्राकृतिक विधानों की पूर्ण सामथ्र्य है । इसे वैदिक शिक्षा एवं वैदिक स्वास्थ्य उपचार के द्वारा जीवंत किया जा सकता है, जो आत्मा की विधि को बुद्धि की विधि होने, मन की विधि होने, विचार की विधि होने, वाणी की विधि होने, व्यवहार की विधि होने के लिए संधारित करेगी-दैनिक जीवन सहजरूप से प्राकृतिक विधानों की पूर्ण सामथ्र्य को धारित करेगा ।

विधि केवल तभी प्रयोजनमूलक होगी, जब यह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी अपनी आत्मा की अनंत सृजनात्मक सामथ्र्य में जीने के लिए अग्रसर करे । वैदिक विधान आदर्श विधान है । इसकी अपनी स्वतः क्रियाशील गतिमानता द्वारा यह स्व-पुनर्वासित, स्व-यौवनकारी एवं सबके लिए पोषणकारी है । वैदिक विधान सहजरूप से सबको न्याय दिलाते हैं । वैदिक विधि नित्य विकास की विधि है, जो चेतना को शरीरिकी में रूपांतरित करती है एवं व्यक्ति संपूर्ण सृष्टि की गतिविधि को संचालित करती है ।

राष्ट्रीय विधि को प्राकृतिक विधानों से समर्थित किया जाना चाहिए ताकि राष्ट्रीय प्रशासन समस्याओं से मुक्त बना रहे एवं राष्ट्र का उसी पूर्ण सुव्यवस्था के साथ संचालन करे, जैसे कि प्राकृतिक विधान सृष्टि का संचालन करते हैं ।

प्राकृतिक विधानों का ज्ञान, इसके सिद्धांत एवं प्रयोगों को प्रत्येक विद्यालय एवं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए, प्रशिक्षण पाने वाले विद्यार्थी एवं नागरिक स्वभाव से ही विधि का पालन करने वाले बनें, राष्ट्रीय एवं प्राकृतिक विधान का उल्लंघन न करें, उन्हेंं किसी न्यायालय अथवा मुकदमे का सामना न करना पड़े और न ही उन्हें किसी पुनर्वास कार्यक्रम की आवश्यकता पड़े ।

आधुनिक विज्ञान विधि, न्याय एवं पुनर्वास की वैदिक पद्धति के लाभों को प्रमाणित करता है
  • अपराध में कमी ।
  • परंपरागत मूल्यों के प्रति वृहत सम्मान ।
  • नैतिक परिपक्वता का उच्चतर स्तर : नैतिक व्यक्तित्व का विकास
  • प्रभावी पुनर्वास : कारागार के अनुशासनात्मक नियमों के उल्लंघन में एवं पैरोल उल्लंघन में कमी आक्रोश में कमी; नवीन अभियोजनों में कमी; मादक पदार्थ एवं मदिरा सेवन में कमी ।
  • किशोर अपराधियों की न्यायालयीन समस्याओं में कमी ।
  • मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य में सुधार : चिंता, तनाव, न्यूरोटिसिज्म, अवसाद, अपराध, अन्र्तमुखता, संदेह, असंतुष्टि, नकारात्मकता, चिढ़चिढ़ापन, आक्रमण, उग्रता, सीजियोफ्रेनिक लक्षण, साइकोपेथिक विचलन एवं आब्सेसिव- कम्पल्सिव व्यवहार में कमी ।